• रोहिणी का अनुकरणीय त्याग

    खुशी की बात है कि राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का किडनी प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक हो गया

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    खुशी की बात है कि राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का किडनी प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक हो गया। उनके परिजनों ने सोमवार को जानकारी दी थी कि सिंगापुर में उनका आपरेशन कामयाब रहा। अभी वे कुछ दिन अस्पताल में ही स्वास्थ्य लाभ करेंगे। लालू प्रसाद यादव के स्वस्थ होने की कामना उनके परिजनों और पार्टी कार्यकर्ताओं समेत देश के बहुत से लोग कर रहे थे।

    पिछड़ी जातियों को राजनीति के जरिए सशक्त करने और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करते हुए उन्होंने एक सफल राजनैतिक पारी खेली और जब वे सक्रिय रूप से मैदान में नहीं थे, तब भी उनका असर किसी न किसी तरह दिख ही जाता था। दरअसल मौजूदा दौर की राजनीति में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के साथ डटकर खड़े होने और अन्याय के खिलाफ बोलने की कीमत चुकाने वाले बहुत कम नेता बच गए हैं, लालू जी उनमें से एक हैं। इसलिए उनके शुभचिंतक और अनुयायी चाहते हैं कि वे स्वस्थ होकर शीघ्र वतन वापस आ जाएं।

    लालू प्रसाद को नया जीवन देने में कुशल डॉक्टरों के साथ-साथ उनकी बेटी रोहिणी आचार्य का अतुलनीय योगदान रहा है। सिंगापुर में अपने परिवार के साथ रह रहीं रोहिणी ने अपने पिता को एक किडनी दान दी है। मानव शरीर में किडनी या गुर्दे का काम रक्त के शुद्धिकरण का होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति में किडनी के काम करने की क्षमता 90 मिलीलीटर प्रति मिनट से ऊपर होनी चाहिए। अगर ये 15 मिलीलीटर प्रति मिनट से नीचे जाए, तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है। ट्रांसप्लांट का मतलब है किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की दो किडनियों में से एक किडनी को मरीज के शरीर में लगा देना। मरीज की दोनों किडनियां वहीं मौजूद रहती हैं, और तीसरी किडनी अलग से प्रत्यारोपित की जाती है। किडनी दान दो तरह से होता है, एक तो मरीज के सगे संबंधी किडनी दे सकते हैं, और अगर परिजन किसी वजह से न दे पाएं, तो मरीज के मित्रों-परिचितों में जो स्वेच्छा से किडनी देना चाहे। दूसरा तरीका उस व्यक्ति की किडनी लगाने का हो सकता है, जिसकी मृत्यु हो गई हो या वह ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया हो।

    चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब अंगदान के जरिए मरीज को नया जीवन मिल सकता है। हृदय, नेत्र, किडनी, फेफड़े ऐसे तमाम अंगों को मृतक के शरीर से निकालकर बीमार व्यक्ति के शरीर में लगाने का चमत्कार अब विज्ञान के जरिए संभव है। ऐसे कई प्रकरण सामने आए हैं, जब अपने किसी प्रिय की मौत के बाद परिजनों ने मृतक के अंगों को दान देने का फैसला किया, और उस वजह से किसी अन्य व्यक्ति को नई धड़कनें मिलीं, किसी को नयी नेत्रज्योति। इस तरह एक इंसान इस संसार के विदा होकर भी किसी न किसी रूप में जिंदा रहा और जो बीमारी के कारण मौत के मुंह में जा रहा था, उसे फिर से जीने का मौका मिला।

    अंगदान के इस महत्व के बारे में जागरुकता फैलाने का काम सरकारी और गैर सरकारी संगठन करते हैं। यही वजह है कि अब बहुत से लोग इसके लिए स्वेच्छा से आगे आ रहे हैं। क़ानून के मुताबिक़, किडनी प्रत्यारोपण व्यावसायिक कारणों के लिए नहीं होना चाहिए। वहीं मृत या ब्रेन डेड ठहराए गए शख्स के परिवार से अनुमति और आधिकारिक प्रक्रिया पूरी करने के बाद किडनी ली जा सकती है। दान देने वाला व्यक्ति 18 साल से ऊपर और स्वस्थ होना चाहिए। यह पुष्टि भी ज़रूरी है कि व्यक्ति किसी दबाव में किडनी न दे रहा हो।

    किडनी ट्रांसप्लांट का फ़ै सला लिए जाने के बाद अस्पताल की जांच समिति ये तय करती है कि डोनर कौन हो सकता है। इसके बाद समिति राज्य की मंजूरी के लिए इसे भेजती है और उसकी स्वीकृति लेती है। यहां भी पूरी पड़ताल होने के बाद ट्रांसप्लांट की अनुमति दी जाती है। अगर मरणोपरांत अंगदान हो रहा है तो ऐसे मरीज़ जिनका नाम अस्पताल की प्रतीक्षा सूची में होता है उसे किडनी नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन या उसके अंतर्गत आने वाली क्षेत्रीय या राज्य ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन जैसी संस्थाओं की सहमति के बाद सूची के हिसाब से अंग उपलब्ध कराया जाता है। कहने का आशय यह कि अंगदान पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत ही होता है।

    लेकिन इस वैज्ञानिक तरक्की को अभिशाप में बदलने की कुत्सित मानसिकता भी समानांतर चल रही है। ऐसे कई गिरोह खड़े हो चुके हैं, जो गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाकर अंगदान को व्यापार में बदल कर लाखों-करोड़ों की कमाई करते हैं। कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जब पुलिस किसी किडनी बेचने और खरीदने वाले गिरोह का पर्दाफाश करती है। कम पढ़े-लिखे या अंगदान के लिए बने कानूनों से अनभिज्ञ लोगों को अंगों की दलाली करने वाले पैसे का लालच देकर उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं और कई बार उन्हें नशे का शिकार बनाकर चोरी से उनका ऑपरेशन कर अंग निकाल लेते हैं। इस अपराध में कई बार डाक्टर, लैब टेक्नीशियन भी शामिल होते हैं, जो अपने पेशे से बेईमानी करते हैं। किडनी जैसे अंगों का व्यापार केवल भारत ही नहीं विदेशों तक में किया जाता है और ऐसे हर सौदे में लाखों की कमाई होती है, जिसका मामूली हिस्सा पीड़ित को मिलता है और कई बार वो भी नहीं। अंगों की चोरी या धोखे से व्यापार की अप्रिय घटनाओं के बीच यह देखना सुखद है कि कैसे एक बेटी अपने वृद्ध पिता को सहर्ष अपना एक अंग देने आगे आई। रोहिणी आचार्य ने लिखा भी कि ये तो बस मांस का एक छोटा सा टुकड़ा है जो मैं अपने पापा को देना चाहती हूं। पापा के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं।

    रोहिणी के इस कदम की सब ओर सराहना हो रही है। जिन लोगों को बेटी के होने पर मलाल होता है, जो बेटियों को अवांछित बोझ समझते हैं। रोहिणी के त्याग से शायद उन लोगों की मानसिकता बदल जाए।

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